एक नेता की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of a Leader Essay in Hindi

Autobiography of a Leader Essay in Hindi: जी हाँ, मैं एक नेता हूँ । एक जमाना था, जब मेरा बोलबाला था। मेरा भाषण सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे। ये अखबारवाले हर जगह मुझे घेरे रहते थे। जनता मेरी राह में आँखें बिछाए रहती थी। आज वह जमाना नहीं रहा। बुढ़ापे ने मुझे कमजोर और निकम्मा बना दिया है। अब भाषण के नाम पर सिर्फ मैं पड़ा-पड़ा खाँसता रहता हूँ और जीवन के अंतिम दिन गिन रहा हूँ।

एक नेता की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of a Leader Essay in Hindi

एक नेता की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of a Leader Essay in Hindi

जन्म, कुटुंब शिक्षा आदि

मेरा जन्म सन १९२५ में गुजरात के एक गाँव में हुआ था। मेरे माता-पिता साधारण किसान थे, लेकिन वे मुझे एक बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। मेरी पढ़ाई लिखाई में उन्होंने कोई कसर उठा न रखी । मैट्रिक की परीक्षा में जब मैं अपने जिले में प्रथम आया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। कॉलेज के प्रथम वर्ष की परीक्षा भी मैंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। लेकिन वह जमाना आजादी को लड़ाई का था। चारों तरफ टिळक, गोखले, गांधी के नाम गूंज रहे थे।

नेता बनने का मौका

जलियाँवाला बाग के हत्याकांड से मेरा खून खौल उठा। उसी समय जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा तो मैं भी कॉलेज छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा। अपनी जोशीली आवाज और लगन के कारण मैं जल्द ही सबकी नजरों में चढ़ गया। बापू की दांडीकूच में मैंने प्रमुख हिस्सा लिया। ब्रिटिश सरकार मुझे कैसे माफ करती? दो वर्ष तक उसने मुझे जेल में बंद कर दिया। लेकिन इसने मेरे नाम को और भी चमका दिया। मेरी गिनती गुजरात के बड़े-बड़े नेताओं में होने लगी।

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समाजसेवा और देशसेवा

गांधीजी से प्रेरणा लेकर मैंने हरिजन आंदोलन में पूरा हिस्सा लिया। स्त्री-शिक्षा के लिए मैंने कई कन्याशालाएँ खुलवाई। बेरोजगारी दूर करने के लिए मैंने चरखे का खूब प्रचार किया। गुजरात में राष्ट्रभाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए मैंने जगह-जगह हिंदी स्कूल खुलवाए। छोड़ो’ आंदोलन में मैं फिर से गिरफ्तार किया गया और लाठी चार्ज में सिर पर कई गहरे घाव भी लगे, लेकिन इन सबको मैंने देशसेवा का पुरस्कार ही समझा।

सुखी जीवन

जब देश स्वतंत्र हुआ तो मुझे अपने प्रदेश के मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया। मंत्री के रूप में मुझे कई कठिनाइयों और प्रलोभनों का सामना करना पड़ा, फिर भी मैंने जो जनसेवा की उसे लोग आज भी याद करते हैं। भारत सरकार ने भी पद्मविभूषण’ की उपाधि देकर मेरा सम्मान किया है। इस तरह देश की सेवा में ही मैंने जीवन का सुख माना। वर्ष बीतने लगे। यह सुख ही मुझे आज भी संतोष देता है। इस संतोष के साथ अब मैं मृत्यु का स्वागत करने के लिए तैयार बैठा हूँ। मेरा देश, मेरा भारत सुखी और समृद्ध बने-बस, यही मेरी अंतिम इच्छा है।

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