एक भिखमंगे की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Beggar Essay in Hindi

Autobiography of Beggar Essay in Hindi: जी हाँ, मैं एक भिखमंगा हूँ। मेरे सामने पैसे फेंकनेवाले तो मुझे बहुत मिलते हैं, किंतु सच्ची हमदर्दी मुझे बहुत कम लोगों से मिलती है।

एक भिखमंगे की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Beggar Essay in Hindi

एक भिखमंगे की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Beggar Essay in Hindi

जन्म और बचपन

हाँ, तो मेरा जन्म दक्षिण भारत के एक गाँव में हुआ था। खेती ही हमारे जीवन का आधार थी। लाड़-प्यार में पलने से मैं बचपन से ही आलसी बन गया था। पर इस आलस्य को भी मेरी बाललीलाओं और लड़कपन की शरारतों से मधुर बना दिया था। पर आज बचपन के सारे सपने याद करके दिल बैठ जाता है।

भिखारी कैसे बना?

कितनी हँसी-खुशी से मेरा बचपन बीत रहा था ! पर अचानक ही यह सारा रंगबेरंग हो गया। गाँव के पास बहनेवाली नदी के किनारे हमारे खेत थे। कैसे लहलहाते थे वे खेत ! लेकिन एक दिन नदी में ऐसी भयानक बाढ़ आई कि सारी फसल का सत्यानाश हो गया। खेत तो डूबे ही थे, घर भी ढह गया। सारे गाँव के साथ हम पर भी मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। कुछ दिनों में नदी का पानी तो उतर गया, पर उसने हमें हमेशा के लिए पानी में बिठा दिया। कुछ दिनों के बाद मेरे माता-पिता हैजे के शिकार हो गए और दर-दर भटकता हुआ मैं इस शहर में आ पहुँचा । कहीं भी काम न मिलने पर मैं चोरियाँ करने लगा। एक दिन चोरी करके भागते-भागते मैं एक बस की चपेट में आ गया। मैं अपना एक पैर और अपनी आँखों की रोशनी खो बैठा। दुनिया की सभी चीजों से मेरा मन उठ गया। पर पेट के खड्डे ने मुझे भीख मांगने के लिए मजबूर कर दिया और मुझे भिखारी बनना पड़ा।

See also  आदर्श विद्यार्थी हिंदी निबंध Ideal Student Essay in Hindi

दुखभरा जीवन

सचमुच, मेरा जीवन बड़ा ही दुखमय है । जीवन में न तो सम्मान है और न प्रेम ! दयालु लोग पैसे दो पैसे मुझे दे देते हैं, उससे मेरा गुजारा हो जाता है । शुरू-शुरू में भीख माँगते समय मेरा हृदय बहुत हिचकिचाता था । सिर पटक पटककर मर जाने की इच्छा हो आती थी, पर अब तो इस बेशर्म पेशे की आदत पड़ गई है। न तो मेरा घर है और न कोई ठिकाना । जहाँ थोड़ी-सी जगह मिल जाती है वहीं रात बिता देता हूँ। पिछली बार की सर्दी में तो मेरे पास ओढ़ने के लिए सिर्फ एक पतली-सी फटी चादर ही थी। बरसात में मेरा दुखी जीवन और भी दुखी बन जाता है। पर अब यह शरीर सब कुछ सहने का आदी बन गया है। आखिर, आज अडतीस साल से यही कर रहा हूँ न?

जीना-एक लाचारी

अब मैं इस जीवन से ऊब गया हूँ। फिर भी लोग समझते हैं, मैं बिना मेहनत के बड़ा अच्छा जीवन गुजार रहा हूँ । जीवन क्या है-नरक का कीड़ा बन गया हूँ। आप की हमदर्दी के लिए लाख-लाख धन्यवाद।

Share on:

इस ब्लॉग पर आपको निबंध, भाषण, अनमोल विचार, कहानी पढ़ने के लिए मिलेगी |अगर आपको भी कोई जानकारी लिखनी है तो आप हमारे ब्लॉग पर लिख सकते हो |