एक पर्वतारोहक की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Mountaineer Essay in Hindi

Autobiography of Mountaineer Essay in Hindi: भूतकाल के सुखद अनुभव जीवन की अनमोल धरोहर होते हैं। फिर भला मैं पर्वतों को ऊँचाइयों से लिपटी उन सुनहरी यादों को कैसे भूल सकता हूँ?

एक पर्वतारोहक की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Mountaineer Essay in Hindi

एक पर्वतारोहक की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Mountaineer Essay in Hindi

बचपन से ही पर्वतों का आकर्षण

मेरा जन्म हिमालय के आँचल में बसे गढ़वाल जिले के एक गाँव में हुआ था। मेरे पिता पहाड़ों पर चढ़नेवालों का सामान होने का काम करते थे। माँ, एक बहन और दो भाई घर की छोटी-सी खेती सँभालते थे। पाठशाला जाते समय आसपास के पर्वतों को देखकर मेरे मन में अनेक प्रश्न उठते थे। पहाड़ों को चोटियाँ मानो मुझे आमंत्रित करती थी। छुट्टियों मे पिताजी मुझे भी अपने साथ ले जाते थे। पर्वतों पर चढ़ने के गुर मैंने पिताजी से ही सीखे। पंद्रह-सोलह वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते मैं कई छोटे-मोटे पर्वतो को सर कर चुका था।

नंदादेवी-धवलगिरि पर आरोहण

इन छोटी-छोटी सफलताओं ने मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया। बीस साल की उम्र में एक जापानी पर्वतारोहक दल के साथ मैंने नंदादेवी शिखर पर सफल आरोहण किया। उसके अगले साल मैंने धवलगिरि पर विजय प्राप्त की। अब मेरा मन विश्व के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट पर पहुंचने के लिए मचलने लगा।

एवरेस्ट-अभियान

सन १९६५ में मेजर कोहली के नेतृत्व में एक भारतीय दल एवरेस्ट पर पहुँचने के लिए रवाना हुआ। मैं भी इस दल में शामिल हो गया। तेज हवाओं के थपेड़ों और बर्फीले तूफानों ने कई बार हमें पीछे हटने के लिए मजबूर किया। लेकिन अंत में हम एवरेस्ट पर पहुँचने में सफल हो गए।

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वह अद्भुत दृश्य

ओह ! क्या अद्भुत दृश्य था उस हिमशिखर का! पवित्रता और शांति से पूर्ण वहाँ के वातावरण की याद आज भी हृदय को गद्गद कर देती है। हम एवरेस्ट पर लगभग चालीस मिनट रहे । हमने वहाँ नारियल फोड़ा, फूल बिखेरे और तिरंगा ध्वज फहराया।

प्रशंसा और सम्मान

इस महान सफलता के बाद हम सकुशल वापस लौटे। वहाँ उपस्थित तमाम लोगों ने हमें बधाइयाँ दीं। दूसरे दिन अखबारों ने हमारे फोटो छापे और हमारे सफल अभियान का विवरण प्रकाशित किया। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हमें बधाई-संदेश भेजे। फिर तो कई संस्थाओं ने हमारा सम्मान किया और हमें पुरस्कार दिए ।

वर्तमान जीवन और संदेश

आज मैं साठ वर्ष से ऊपर का हो गया हूँ । भारत सरकार ने देहरादून में ‘पर्वतारोहण प्रशिक्षण केंद्र’ खोल रखा है। मैं यहाँ एक मानद प्रशिक्षक के रूप में काम करता हूँ। मैं अपने प्रशिक्षणार्थियों से यही कहता हूँ कि इन पर्वतों से कुछ शिक्षा लो। इनकी तरह दृढ़ निश्चयी और अडिग बनो। सतत अभ्यास और संकल्प के बल पर इन्सान प्रत्येक शिखर पर विजय प्राप्त कर सकता है।

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