Autobiography of Ocean Essay in Hindi: ओ स्टीमर में यात्रा करनेवाले मुसाफिर ! पता नहीं तुम कहाँ के निवासी हो। यदि तुम यहीं मेरे तट के समीप रहनेवाले हो तो मेरे जीवन को तुमने अच्छी तरह से देखा होगा । यदि तुम दूर किसी मैदान या पर्वतप्रदेश के रहनेवाले हो तो मेरी जीवनकथा तुम्हारे लिए और भी दिलचस्प बन जाएगी।
सागर की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Ocean Essay in Hindi
जन्म
मुझे जन्म लिए लाखों-करोडों वर्ष हो गए हैं। सूर्य से उत्पन्न पृथ्वी जब ठंडी होने लगी तो उसके कुछ भाग सिकुड़ गए और विशाल गड्डे बन गए । ऊपर उठे भाग पहाड़ कहलाने लगे और नीचे रहे हुए गड्डों में पानी भर गया। बस, इस तरह मेरा जन्म हुआ। तब से आज तक न जाने कितने युग बीत मैं आनंद से जीवन बीता रहा हूँ।
आज की सभ्यता और सागर
तुम मेरी इस अथाह जलराशि को देख रहे हो, किंतु मेरा पानी अपने वास्तविक रूप में किसी के काम नहीं आता । बहुत दिनों तक मैं अपने इस खारे पानी पर पछताता रहा । पर जबसे मनुष्य ने इस पानी से नमक बनाना शुरू किया और मेरे बादलों ने मीठे पानी से धरती गोद सुख से भर दी, मुझे काफी संतोष का अनुभव होने लगा है। आकाश में खेलते अपने प्यारे बादलों को देखकर मेरा अंग-अंग मुस्करा उठता है । उन्हीं से दुनिया में सर्वप्रथम वनस्पति, बाद में जीवजंतु और फिर मनुष्य की सभ्यता का जन्म हुआ है । एक दिन मुझ पर नावें और बड़े-बड़े जहाज चलने लगे। इन सबसे तो मुझे बड़ी खुशी हुई। किंतु जब मनुष्य ने मेरी प्यारी-प्यारी मछलियों को मारना शुरू किया, तब मेरा रोम-रोम रो उठा।
महत्त्व
सचमुच, मेरे खारे पानी में अनेक कीमती पदार्थ घुले रहते हैं। मेरी अपनी सुंदरता भी अद्वितीय है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मेरा सौदर्य देखते ही बनता है। चाँदनी रात को मेरी शोभा देखकर लोग खुशी से झूम उठते हैं। न जाने कितने कवियों और चित्रकारों को मैं प्रेरणा देता रहता हूँ । मेरी अनंत लहरों का संगीत कितना मधुर है ! यह मेरा ही प्रताप है कि मेरे समीपवर्ती स्थानों में वातावरण सम रहता है, न अधिक गर्मी, न अधिक ठंडी।
स्मृतियाँ
भगवान राम ने मेरा अहंकार चूर-चूर करके मुझे सद्बुद्धि दी थी। मैंने अपने इस लंबे जीवन में अनेक दुर्घटनाएँ भी देखी है । कितने जहाज मेरे विशाल उदर में डूब गए हैं। कई लोगों ने मुझमें आत्महत्याएँ की है। कभी-कभी मेरी जलराशि ने पास के गाँव-नगरवालों को भारी हानि पहुँचाई है। ये दुखभरी स्मृतियाँ याद न आएँ तो अच्छा !
मेरा आदर्श
जहाँ तक हो सका, मैंने संसार का कल्याण करने की कोशिश की है। नदियाँ आकर मुझमें मिलती अवश्य हैं, किंतु यह उनकी अपनी इच्छा है। मेरी यह इच्छा है कि आनंद के साथ मैं सदा इसी प्रकार लहराता रहूँ, मानव की सेवा करता रहूँ !