एक बूढ़ी गाय की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Old Cow Essay in Hindi

Autobiography of Old Cow Essay in Hindi: तुम क्यों इतना हट कर रहे हो मुझसे? मेरे जीवन में ऐसी क्या दिलचस्प बात है, जो मैं तुम्हें सुनाऊँ ? पर तुम नहीं मानते हो तो मुझे अपनी जीवनकथा कहनी ही पड़ेगी। अच्छा, तो लो सुनो।

एक बूढ़ी गाय की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Old Cow Essay in Hindi

एक बूढ़ी गाय की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Old Cow Essay in Hindi

जन्म और बचपन

मेरा जन्म आज से कई वर्ष पहले एक किसान के घर में हुआ था। मैं सुबह-शाम अपनी माँ का ताजा-ताजा दूध पीती और उसी के साथ जंगल में घास चरने जाती थी। माँ का प्यार पाकर में मतवाली बन जाती और सारे जंगल को अपनी उछल-कूद तथा शरारतों से भर देती । मेरे बाल साथी दूसरे बछड़े थे। इस प्रकार कुछ वर्षों में मैं सयानी हो गई और तब मेरा जीवन भी थोड़ा बदला।

मालिक की सेवा

मेरी माँ अब बूढ़ी हो चली थी। अचानक एक दिन वह मर गई । मरते समय माँ ने मुझे किसान की सेवा करने का आदेश दिया। कुछ ही समय में मैंने एक सुंदर बछड़े को जन्म दिया। मालिक और मालकिन दोनों ही मुझे बहुत चाहते थे, मैं बहुत दूध जो देती थी । मेरा बछड़ा तो उनके पुत्र के समान था। मेरे दूध से मालिक के यहाँ दही, मक्खन और घी की कभी कमी न रहती थी। मुझे दुख सिर्फ इस बात का था कि किसान मेरे बछड़े को पर्याप्त दूध नहीं पीने देता था।

कुछ अनुभव

धीरे-धीरे मेरे जीवन के दिन कटते गए। मेरी दो संताने हैं। दोनों बछड़े बैल के रूप में किसान की सेवा कर रहे हैं। जब मैं बूढी हो गई तब एक दिन किसान ने मुझे कुछ लोगों के हाथ बेच दिया। अपनी पुरानी देहली और बाल-बच्चों को छोड़ते हुए मुझे बड़ा दुख हुआ। लाचार होकर आँसू बहाते हुए मुझे वहाँ से चलना पड़ा।

वे लोग मुझे कसाईखाने ले आए। वहाँ पर बहुत-सी दूसरी गाये और भेड़-बकरियाँ भी थीं। सबके चेहरे पर मौत की छाया फैली हुई थी। मामला समझते ही मेरा तो सारा खून बर्फ हो गया। पर इतने में कुछ भले लोग वहाँ आए और मुझे तथा मेरे साथवाली गायों को खरीदकर अपने साथ ले चले। ये लोग ‘गौहत्या विरोधी समिति के सदस्य थे। तब से मैं इसी समिति की गौशाला में रहती हूँ। मुझे यह भी पता चला कि मेरी जाति की रक्षा के लिए बड़े-बड़े आंदोलन किए जा रहे हैं, लेकिन यह दुख की बात है कि जो लोग सड़कों पर जितने उत्साह से नारे लगाते हैं वे उतने उत्साह से मेरे सामने चारा नहीं डालते!

अंतिम अभिलाषा

इस प्रकार मेरा जीवन सुख दुख की धूप-छाँव में से गुजरा है । यह कितने दुख की बात है कि जिस भारत में गायों को माता का स्थान दिया गया है, उसी भारत में उनका कत्ल किया जाता है। इस गौशाला में मैं सुखी हूँ और जीवन के आखिरी दिन बिता रही हूँ। तुम्हारी हमदर्दी के लिए धन्यवाद !

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