यदि समाचारपत्र न होते हिंदी निबंध If there were no Newspaper Essay in Hindi

यदि समाचारपत्र न होते हिंदी निबंध If there were no Newspaper Essay in Hindi: आज हम ज्ञान-विज्ञान की जिस दुनिया में रहते हैं, उसमें समाचारपत्रों का प्रमुख स्थान है । आखिर समाचारपत्र ही तो हमें सारी दुनिया से जोड़ते हैं। समाचारपत्रों के दर्पण में ही हम पल पल बदलती हुई दुनिया का प्रतिबिंब देखते हैं। समाचारपत्र आज सामान्य व्यक्ति की जरूरत बन गए हैं।

यदि समाचारपत्र न होते हिंदी निबंध If there were no Newspaper Essay in Hindi

यदि समाचारपत्र न होते हिंदी निबंध If there were no Newspaper Essay in Hindi

संसार की घटनाओं के समाचार

कुछ लोगों के लिए तो समाचारपत्र व्यसन बन गए हैं। सुबह आँख खुली नहीं कि बेड-टी के साथ उन्हें गरमागरम ताजी खबरोवाला समाचारपत्र मिलना ही चाहिए। समाचारपत्र पढ़े बिना उनका चैन हराम हो जाता है। समाचारपत्र में दुनिया का दर्शन करने के बाद ही उन्हें नित्यकर्म याद आते है । यदि समाचारपत्र न होते तो अखबार के ये प्रेमी कहाँ जाते? यदि समाचारपत्र न होते तो हमें घर बैठे संसार को ताजी घटनाओं का पता कैसे चलता? संसार तो दूर रहा, अपने देश और नगर की हलचल से भी हम. अनजान ही रह जाते । कहाँ युद्ध हो रहा है, कहाँ प्राकृतिक विपत्तियाँ आई हैं, कहाँ तख्तपलटा हुआ और कहाँ तख्तनशीनी हो रही है-आदि से हम अनभिज्ञ रहते । बाजारों के भावों का भी हमें घर बैठे ज्ञान न हो पाता । कहाँ कौन-सा कार्यक्रम है, इसका पता अखबारों के बिना हमें कैसे चलता?

विविध विज्ञापन

खबरों के अतिरिक्त समाचारपत्र विज्ञापनों के दूत का भी काम करते हैं। सिनेमा, व्यापार, नौकरी, जगह-जमीन तथा विभिन्न उत्पादों के विज्ञापन देखकर ही हमें उनकी जानकारी होती है। ये विज्ञापन व्यापार को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके कारण खरीदार और विक्रेता के बीच सरलतापूर्वक संपर्क स्थापित होता है। अखबारों के अभाव में विज्ञापनों की दुनिया सूनी रह जाती। दिवालों पर पोस्टर चिपकाकर क्या अखबारी विज्ञापनों के अभाव की पूर्ति हो पाती?

लाखों लोगों की जीविका का साधन

बारह-सोलह पृष्ठवाले समाचारपत्र लाखों लोगों को रोजी-रोटी देते हैं। लाखों लोग अखबारों के प्रेसों और कार्यालयों में काम करते हैं । हजारों पत्रकार और संवाददाता खबरें जुटाने में लगे रहते हैं। कितने ही लेखक समाचारपत्रों में लेख या स्तंभ लिखते हैं। रविवारीय संस्करणों में तो कहानियाँ, नाटक, कविताएँ तथा साहित्य की अन्य विद्याएँ भी छपती है । इन सबके कारण समाज के शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग को रोजगार मिलता है । अखबार बेचकर कितने ही लोग अपना गुजारा करते हैं। यदि समाचारपत्र न होते तो क्या ये लाखों लोग बेकार न हो जाते?

कुछ समाचारपत्रों का कुप्रभाव

हाँ, कुछ समाचारपत्र सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने का काम करते हैं। उनके कारण लोगों में उत्तेजना फैलती है और दंगे-फसाद होते हैं। यदि अखबार न होते तो शायद इन कुप्रवृत्तियों का प्रसार न होता और सामाजिक शांति और एकता में दरारें न पड़ती।

लोकतंत्र में योगदान

कुछ भी हो, समाचारपत्र सामान्य ज्ञान और शिक्षा का प्रसार करते है। लोकतंत्र में समाचारपत्रों का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है। लोकचेतना को जाग्रत करने में ये विशिष्ट भूमिका निभाते हैं। यदि ‘मराठा’, ‘केसरी’, ‘आज’ जैसे राष्ट्रीय अखबार न होते तो भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता की भावना जगाना क्या कठिन नहीं हो जाता? सच तो यह है कि आज समाचारपत्रों के न होने की कल्पना करना ही कठिन है।

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