मेरी माँ हिंदी निबंध Essay on My Mother in Hindi

Essay on My Mother in Hindi: ‘माँ’ शब्द का उच्चारण करते ही सामने एक ऐसी दिव्य मूर्ति आ जाती है, जिसके वात्सल्य का अंत नहीं, जिसके प्रेम की कोई सीमा नहीं और जिसकी गोद में बैठने का सुख संसार के सभी सुखों से बढ़कर है।

मेरी माँ हिंदी निबंध Essay on My Mother in Hindi

मेरी माँ हिंदी निबंध Essay on My Mother in Hindi

माँ का प्रेम

सचमुच, मेरी माँ प्रेम की प्रतिमा है। वह सुबह से शाम तक हमारे परिवार की सुख-सुविधा की चिंता में लीन रहती है। आराम हराम है ‘ यह सूत्र उसका जीवनमंत्र है । घरगृहस्थी की छोटी सी छोटी बात पर उसकी नजर रहती है। सुंदर व्यवस्था और आकर्षक सजावट से वह घर को सदा स्वर्ग बनाए रखती है। मैंने अपनी माँ को क्रोध करते कभी नहीं देखा। जब हम भाई-बहनों से कोई नुकसान हो जाता है, तब भी वह हमें डाँटती नहीं, पर काम करने में सदा सावधानी रखने की सीख देती है। उसके मीठे वचन हम पर जादू करते हैं और हमारे मन में उसके प्रति आदर और श्रद्धा बनाए रखते हैं। जब कभी मैं पिताजी के क्रोध का शिकार बनता हूँ, तो माँ की सुखद छाया मुझे सहारा देती है।

माँ की धार्मिकता

मेरी माँ धार्मिक वृत्ति की है। रामायण का नित्य पाठ, देवपूजा और व्रत उपवास आदि उसकी धार्मिक वृत्ति के परिचारक हैं । आँगन में हरा-भरा तुलसी का पौधा हमेशा उसका आदर और स्नेह पाता है। हमारे तोते को भी ‘राम-राम’ बोलना उसी ने सिखाया है, किंतु उसकी धार्मिकता में अंधश्रद्धा का अंश नहीं है। घर में या बाहर, किसी का भी दुख उससे नहीं देखा जाता। हमारे पास-पड़ोस में यदि कभी किसी को कोई तकलीफ हो तो वह यथाशक्ति उसकी सहायता करती है। सचमुच, मेरी माँ सेवा की मूर्ति है।

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मेरे मित्रों आदि से व्यवहार

संपन्न घर की मालकिन होने पर भी उसमें लेशमात्र अभिमान नहीं है। वह सदा बड़े प्रेम से हमारे सगे-संबंधियों का स्वागत करती है। मेरे मित्रों को भी वह मेरे समान ही प्रेम करती है। मेरी बहन की सहेलियाँ उससे अपनी माँ के समान ही स्नेह पाती हैं। मनुष्य की तो बात ही क्या, हमारा कुत्ता मोती और तोता मिठूराम भी उससे संतान का-सा स्नेह पाते हैं।

शिक्षा के प्रति दिलचस्पी

मेरी माँ बहुत पढ़ी-लिखी नहीं है, फिर भी पढ़ाई के प्रति उसका बड़ा चाव है। अपने इसी चाव के कारण हम लोगों से उसने बहुत कुछ पढ़ना-लिखना सीखा है। अब तो वह धर्मग्रंथों के अतिरिक्त अखबार भी पढ़ती है । कई महिलोपयोगी मासिक पत्रिकाएँ भी उसने मँगाना शुरू किया है। सिलाई, कढ़ाई और चित्रकला में भी उसे दिलचस्पी है।

उपसंहार

इस प्रकार मेरी माँ स्नेह, ममता, उत्साह, कर्तव्यपरायणता और सद्भावना की मूर्ति है । मैंने अपने जीवन में जो कुछ सफलता पाई है, उसका सबसे अधिक श्रेय मेरी माँ को ही है। इसलिए तो मेरे दिल की हर धड़कन निरंतर मेरी माँ को प्रणाम करती है।

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