पिंजड़े में बंद पंछी की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Bird in Cage Essay in Hindi

Autobiography of Bird in Cage Essay in Hindi: हाय ! अफसोस ! मुझे सपने में भी यह कल्पना न थी कि मुझे पिंजड़े में बंद होना पड़ेगा! कभी ऐसे बुरे दिन आएँगे, जब मुझे बाहर से खामोश रहकर भीतर ही भीतर रोना पड़ेगा।

पिंजड़े में बंद पंछी की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Bird in Cage Essay in Hindi

पिंजड़े में बंद पंछी की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Bird in Cage Essay in Hindi

जन्म और पूर्वजीवन

मेरा जन्म एक बगीचे में हुआ था। आम के पेड़ की शाखा पर हमारा घोंसला था। मेरे जन्म के कुछ दिन बाद मेरी माँ मर गई। पिताजी ने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया। उन्होंने मुझे नीले आकाश में उड़ना सिखाया। फिर तो मैं अपने साथियों के साथ बाग की बहारें देखने और आकाश की सैर करने निकल पड़ता था। कभी उस वृक्ष की डाली-डाली पर उड़ता-फिरता और खेला करता था। सचमुच, वे दिन बड़े सुहाबने थे। आज मुझे याद आ रहा है, मेरा गुजरा हुआ रंगीन जमाना, चमन की वे झाडियाँ और मेरा प्यारा आशियाना। मैं अपने पंखों को फड़फड़ाकर आसमान के बादशाह की तरह उड़ता था, मधुर गीत गाता था और घंटों दुनिया के दुखदर्द से बेखबर होकर सैर किया करता था। कैसी मजेदार थी वह जिंदगी!

पिंजड़े में कैद

किंतु एक दिन एक क्रूर शिकारी ने मुझे जाल में फंसा दिया। उसने मुझे कुछ रुपयों में बेच दिया और मैं अब इस सुनहले पिंजड़े में अपने दुख के दिन काट रहा हूँ । यहाँ मेरी हालत बहुत ही दुखपूर्ण है । बच्चे मुझे खिलौना समझकर घेर लेते हैं और कुछ न कुछ खिलाने की कोशिश करते हैं। वे क्या जाने कि स्वतंत्रता का संगीत कैसा होता है? वे पराधीनता का दुख क्या समझें?

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मेरी हृदयव्यथा

फिर भी मैं लोगों को सुख देने के लिए झूठी हँसी हँसता हूँ। मैं जानता हूँ कि ‘अच्छा है कुछ ले जाने से, देकर ही कुछ जाना।’ मेरे बंदी जीवन की करुणा को वही समझ सकता है, जिसने कभी बंदी जीवन बिताया हो । यहाँ मुझसे मेरा जीवन छीना जा रहा है, मेरे हृदय का मधुर संगीत छीना जा रहा है ! अरे ! यहाँ तक कि मेरी भाषा भी छीनी जा रही है। लोग मुझे ‘राम राम’, ‘कृष्ण कृष्ण’ कहना सिखाते हैं। घरवालों ने मुझे स्वागतम् ‘ कहना सिखाया है। यह सच है कि मैं सारे घर का प्रिय पक्षी हूँ, किंतु आप ऐसे प्रेम को क्या कहेंगे?

उपसंहार

इस सुंदर पिंजड़े में स्वादिष्ट भोजन पाकर भी मैं इस गुलामी के जीवन से तंग आ गया हूँ। भूतकाल को रंगीली यादें मेरा दुख और भी बढ़ा देती है । मैं मृत्यु को बुलाता हूँ, लेकिन वह भी नहीं आती। कई बार मन में आया कि सिर पटक-पटककर जीवन का अंत कर दूं। कई बार प्रयत्न किया, किंतु ऐसे समय में घर के लोग मुझे लाड़-प्यार से इतना लाद देते हैं कि फिर जीना पड़ता है। बार-बार मेरा जी पुकार उठता है कि हाय रे मानव ! आज तू खुद आकाश में उड रहा है और उड़ने के हमारे जन्मसिद्ध अधिकार को हड़प लेना चाहता है ! मैं ईश्वर से रोज प्रार्थना करता हूँ ‘ मेरी तकदीर के मालिक, मेरा कुछ फैसला सुना दे।’

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