Autobiography of Old Tree Essay in Hindi: पथिक, तू मेरी हालत पर दो बूंदें न बहाए तो न सही, लेकिन मेरी कहानी तो सुनता जा । आज मुझे कुछ कहने की इच्छा हुई है।
एक जीर्ण वृक्ष की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Old Tree Essay in Hindi
बचपन
बचपन में मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। कभी शीत की ठिठुरन, कभी गरमी की जलन, कभी वर्षा की झड़ी। लेकिन उन कष्टों में भी मेरे लिए एक अनोखा आनंद था। हर सुबह उषा की मोहिनी मुसकान देखकर मेरे जी की कली खिल उठती थी। संध्या मुझ पर अपनी स्वर्णिम सुंदरता बिखेर देती थी। कितनी हँसी-खुशी से बीत गए बचपन के वे दिन !
यौवन
आज तो मैं केवल दूंठ मात्र रह गया हूँ, लेकिन क्या जमाना था ! यौवन के वे दिन, वे बहारे, वे रंगरेलियाँ आज भी आँखों के सामने घूमती रहती हैं। उस समय मेरे चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। मेरे हरे-भरे पत्ते और घनी छाया सबके दिल पर जादू करती थी। मेरी डालियों पर भाँति-भाँति के पक्षी आकर बैठते थे और स्वयं को धन्य मानते थे। उस छोटी-सी चिड़िया को तो मैं कभी नहीं भूल सकता, जो हवा से हिलती मेरी टहनियों पर बैठकर किल्लोल किया करती थी। मुझे यह भी याद है कि एक कोयल ने मेरी घनी-घनी छायादार डालियों में अपना घोंसला बनाया था। मैं कितने स्नेह से उस कोयल के नन्हें-नन्हें बच्चों की रक्षा करता था ! वे मेरे फल खाकर आनंद से जिंदगी बिता रहे थे।
कुछ मधुर स्मृतियाँ
दोपहर को मेरी छाया में ग्वालों के लड़के खेला करते थे और कई मुसाफिर आराम करते थे। मेरे नीचे कितनी बैलगाड़ियाँ खड़ी रहती थीं। कभी कोई बारात भी मेरी छाया में रुकती थीं, शहनाई के सुर सुनकर मैं मारे खुशी से फूला न समाता था। कभी-कभी जब गाँव की बालाएँ नववधू बनकर ससुराल जाते समय मेरे निकट से गुजरती, तो मेरी शाखाएँ पत्ते गिराकर आँसू बहाने लगती थीं। नवरात्रि के दिनों में मेरे आसपास रास और गरबानृत्यों की धूम मच जाती थी। अनेक घटनाओं का मैं मूक साक्षी रहा हूँ। देशी-विदेशी, पुरुष, स्त्री, बालक सभी के स्वागत में सदा मेरी आँखें बिछी रहती थीं।
दुर्दशा
कालचक्र धूमता रहा। इस गाँव में बिजली के आगमन ने मुझ पर वज्राघात किया। बिजली के खंभे और तार लगानेवाले इंजिनियरों ने निर्दय होकर मेरी हरी-भरी शाखाएँ कटवा दी और मेरी शान-शौकत मिट्टी में मिल गई।
अंतिम इच्छा
आज मेरे पत्ते झड़ गए हैं, डालियाँ सूख गई हैं। न आज मै लोगों को छाया दे सकता हूँ और न आँधी से बचा सकता हूँ । अब तो एक ही इच्छा शेष रह गई है, बस मरने की । मैं मरकर भी जला की लकड़ी केरूप में तुम्हारे काम आ सकूँगा।