यदि मैं परीक्षक होता हिंदी निबंध Essay on If I were a Examiner in Hindi

Essay on If I were a Examiner in Hindi: वर्तमान शिक्षाप्रणाली में परीक्षा का बड़ा महत्त्व है। परीक्षा की सार्थकता का मुख्य आधार योग्य और अच्छे परीक्षकों पर होता है। अत: मैं यह दिखाना चाहता हूँ कि यदि मैं परीक्षक होता तो किन आदर्शों को अपने सामने रखता।

यदि मैं परीक्षक होता हिंदी निबंध Essay on If I were a Examiner in Hindi

यदि मैं परीक्षक होता हिंदी निबंध Essay on If I were a Examiner in Hindi

परीक्षक के गुण

सचमुच, एक परीक्षक को तलवार की धार पर चलना पड़ता है। परीक्षक अपने ज्ञान और बुद्धि से साधारण और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को योग्यता का मूल्यांकन करता है । इस काम में उसे बड़ी सावधानी और विवेक से काम लेना पड़ता है। परीक्षक के लिए भी न्यायाधीश के समान निष्पक्षता और संतुलित मस्तिष्क को आवश्यकता रहती है।

मैं कैसा परीक्षक न होता

यदि मैं परीक्षक होता तो सबसे पहले अपने-आप में आदर्श परीक्षक के सब गुणों का विकास करता । मैं उन परीक्षकों की तरह न होता, जो उत्तरवहियों को इधर-उधर थोड़ा बहुत देखकर या किसी की सिफारिश पर अंक रखते चले जाते हैं। मैं उन परीक्षकों के समान भी न होता, जो उत्तर पुस्तकों को जाँचना बाएँ हाथ का खेल समझते हैं और विद्यार्थियों की किस्मत से खेलते हैं। विद्यार्थी का नाम, नंबर या चेहरे को याद करके अंक देनेवाले परीक्षकों को भी मैं कभी पसंद नहीं करता। अंक देते समय जो कुछ लिखा हो, उसी को देखकर मैं मूल्यांकन करता ।

परीक्षा का महत्त्व

परीक्षक विद्यार्थियों का भाग्यविधाता है। उसका निर्णय विद्यार्थियों के लिए वरदान या अभिशाप बन सकता है। मैं यह कभी न भूलता कि विद्यार्थियों और अध्यापकों के स्तर में फर्क होता है। विद्यार्थी में अपनी एक शक्ति, समझदारी और उत्तर देने की योग्यता सीमित होती है। अत: उनके स्तर को ध्यान में रखकर ही मैं उत्तरपत्रों को जाँचता । मैं परीक्षक के रूप में विद्यार्थियों के कोमल और आशापूर्ण हृदय को कभी चोट न पहुँचने देता । उदार और न्यायी दृष्टिकोण रखकर मैं सदा उन्हें अधिकाधिक अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करता।

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मेरा आदर्श

परीक्षक बनकर मैं सभी प्रकार के प्रलोभनों से मुक्त रहता। आजकल कुछ परीक्षक रिश्वत, सिफारिश आदि के शिकार हो जाते हैं, किंतु मैं अपने कर्तव्य और ईमानदारी से कभी मुँह न मोड़ता । कभी किसी के दबाब में आकर कमजोर छात्र का समर्थन न करता, किसी योग्य विद्यार्थी की प्रगति को रोकने का पाप भी न करता।

इस प्रकार अपनी संवेदना, दृढ़ संकल्प और संयम से मैं परीक्षार्थियों के भविष्य को बनाता, न कि अपनी दूषित मनोवृत्ति से उसका जीवन नष्ट करता। मैं अपने कर्तव्य के उस पहलू का सदा ध्यान रखता, जिसका संबंध छात्रों के विकास, समाज की उन्नति और शिक्षा की प्रगति से है।

उपसंहार

काश! मैं एक परीक्षक बन पाऊँ और अपने इन आदर्शों को पूरा कर सकूँ।

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