हमारे पड़ोसी हिंदी निबंध Our Neighbors Essay in Hindi

Our Neighbors Essay in Hindi: सामाजिक जीवन में पडोसी का बड़ा महत्त्व है। दिन हो या रात, जब कभी कोई काम आ पड़ता है या कोई मुसीबत आती है। तब हम सबसे पहली सहायता पड़ोसी से ही चाहेंगे। सचमुच, सच्चा स्वजन तो पड़ोसी ही है। अच्छे-भले पड़ोसी को पाना बड़े सौभाग्य की बात है। अगर बुरा पड़ोसी मिल गया तो समझ लो कि मुसीबतों का पहाड़ आ गिरा।

हमारे पड़ोसी हिंदी निबंध - Our Neighbors Essay in Hindi

हमारे पड़ोसी हिंदी निबंध Our Neighbors Essay in Hindi

अपने पड़ोसियों का परिचय

हमारे चार पड़ोसी हैं। एक हैं श्रीमान रामनारायण लाल । वे बड़े तेजमिजाज और घमंडी हैं । किसी से सीधे मुँह बात नहीं करते। न जाने वे अपने-आपको अफलातून के अब्बा समझ बैठे हैं या सुकरात के बाबा । कभी किसी बात पर चर्चा छिड़ी तो तर्कों का जाल-सा फैला देते हैं।

दूसरे हैं महाशय गुलाबराय सेठ । वे बड़े सीधे-सादे और मुहब्बती आदमी हैं। उनकी पत्नी और बच्चे भी बहुत सीधे और भले है। कभी कुछ काम पड़ता है तो वे इनकार नहीं करते । उनकी दुकान से हम अच्छा और सस्ता कपड़ा खरीदते हैं। वे सभी के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं। एक समय जब मेरे माता-पिता घर नहीं थे और मेरा छोटा भाई सीढ़ी से गिर पड़ा था, तब सारी रात मेरे साथ जागकर उन्होंने मेरे छोटे भाई की देखभाल की । सचमुच, इन्सान के रूप में वे एक फरिश्ते हैं।

हमारे तीसरे पड़ोसी दिलीपकुमार राय ने अभी-अभी एम. ए. पास किया है । स्वभाव के तो वे बड़े अच्छे हैं, लेकिन उन्हें नमक-मिर्च लगाकर बात करने की आदत है। जब कभी हम उनसे मिलेंगे तो अपनी बातें कहकर वे हमारे कान पका देंगे। उनके जीवन का मधुर स्वप्न है एक अच्छा प्रोफेसर बनना । इसीलिए शायद वे सदा लेक्चर’ देने का अभ्यास करते रहते हैं।

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हमारे चौथे पड़ोसी हैं श्री चिपलुणकर महोदय । उनके पाँच लड़के और दो लड़कियाँ हैं। उनके घर से सदा ही जोर-जोर से रोने, चिल्लाने या डाँटने-फटकारने की आवाजें आती रहती हैं। उनकी पत्नी बड़ी झगड़ालू औरत है और हमेशा ईंट का जवाब पत्थर से देती है। उनके बच्चे भी बड़े शरारती और उदंड हैं। वे छोटे-बड़े का ख्याल नहीं करते । उनके यहाँ एक पुराना ग्रामोफोन है। वे हररोज देर रात तक उस पर पुराने रिकोर्ड जोर-जोर से बजाकर पड़ोसियों की नींद हराम करते हैं। भगवान बचाए ऐसे पड़ोसी से।

उपसंहार

ऐसे अनोखे हैं हमारे सब पड़ोसी। सबका अपना-अपना राग-रंग है। इसके बावजूद जन्माष्टमी, दशहरा, दीवाली आदि त्योहारों में हम एक-दूसरे से प्रेमपूर्वक मिलते-जुलते हैं। उस समय मानो हम सभी एक ही परिवार के सदस्य बन जाते है । जाति-पाँति की दीवारें ढह जाती हैं। प्रांतीयता का विष हम पर नहीं चढ़ता। हमारा सहयोग और सहवास अमृततुल्य बन जाता है।

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