Poet Conference I Saw Essay in Hindi: ऋतुराज वसंत की सवारी आते ही मानवमन किसी विशिष्ट आनंद को पाने के लिए ललक उठता है। जगह जगह वसंतोत्सव की धूम मच जाती है। गाँवों में फाग गाया जाता है, तो शहरों में कवियों की टोलियाँ जमती है। इसी सिलसिले में प्रत्येक वसंतपंचमी को हमारे शहर में कवि सम्मेलन का आयोजन होता है। पिछली बार के कवि-सम्मेलन का मैंने जो आनंद लिया, उसका रस आज भी ज्यों-का-त्यों ताजा है।
मेरा देखा हुआ कवि-सम्मेलन हिंदी निबंध – Poet Conference I Saw Essay in Hindi
प्रारंभ
मैं जब सभागार में पहुँचा तब रसिक श्रोताओं की मंडली कुर्सियों पर विराजमान हो चुकी थी। कविवृंद मंच की शोभा बढ़ा रहा था। बालिकाओं का एक दल माइक पर सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर रहा था। वंदना के बाद अध्यक्ष महोदय ने आए हुए कवियों का परिचय दिया। इसी के साथ कवि-सम्मेलन का आरंभ हुआ।
वर्णन
माइक पर सबसे पहले कवि श्री बालकवि बैरागी थे। उन्होंने वसंत की प्राकृतिक सुषमा को अपनी कविता में साकार कर दिया। श्रोतागण उनकी भावपूर्ण मधुर शब्दावली पर झूम उठा। बैरागीजी के बाद श्री सोम ठाकुर माइक पर आए तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। सोमजी ने अपना प्रसिद्ध गीत ‘लौट आओ, आँख का आँसू निमंत्रण दे रहा है ‘ सुनाया। उनके सरस गीत और सुरीले कंठ ने श्रोताओं पर मोहिनी-सी डाल दी। श्रोताओं ने उनसे एक और गीत सुनाने की फरमाइश की।
इसके बाद निर्भय हाथरसी माइक पर आए। उन्होंने अपनी मीठी तीखी पैरोड़ियों में शासकों पर ऐसे व्यंगबाण कसे कि लोग बाग-बाग हो उठे। कवयित्रियों में इंदिरा पाठक और कीर्ति चौधरी की खूप सराहना हुई। राजस्थान के सुरेंद्र शर्मा ने अपनी काव्य-चुटकियों से लोगों को हँसा-हँसाकर लोटपोट कर दिया। सबसे अंत में गीतसम्राट श्री गोपालदास ‘नीरज’ आए। उनके ‘कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे’ गीत ने समा बाँध दिया। श्रोता भावविभोर होकर रस-सागर में डूबने लगे।
विशेषताएँ
माइक पर कवि दूंठ’ आए जो बिल्कुल दूंठ ही साबित हुए । कवि ‘सावन’ की आवाज में बिजली की कड़क तो थी, पर बौछार का कहीं पता न था। कवयित्री लीला की कविता उतनी सुंदर न थी, जीतनी वे स्वयं थीं।
प्रभाव
फिर भी, सचमुच, कवि-सम्मेलन बड़ा सफल रहा। उस काव्य-रस में नहाने की मधुर स्मृति मेरी चिरसंगिनी बन गई है।