पाठशाला से बिदा लेते हुए हिंदी निबंध School Farewell Ceremony Essay in Hindi

School Farewell Ceremony Essay in Hindi: आज भी पाठशाला से बिदा होने के दिन की याद आते ही आँखों से आँसू दुलक पड़ते हैं और हृदय व्यथा से भर आता है। उस दिन हम पाठशाला से सदा के लिए बिदा होनेवाले थे।

पाठशाला से बिदा लेते हुए पर हिंदी में निबंध School Farewell Ceremony Essay in Hindi

पाठशाला से बिदा लेते हुए पर हिंदी में निबंध School Farewell Ceremony Essay in Hindi

कक्षा का वातावरण

एक ही पाठशाला में मैं वर्षों से पढ़ रहा था। एक के बाद एक करके दस साल गुजर गए । मैं दसवीं कक्षा में पहुँच गया। अब हमें एस. एस. सी. बोर्ड की परीक्षा में बैठना था, इसलिए पाठशाला में यह हमारा अंतिम वर्ष था। दिन बीतते गए और बिदाई का आखिरी दिन भी आ गया। उस दिन विद्यार्थियों में न वह उत्साह था, न वह उल्लास था और न वह आनंद था जो पाठशाला में भर्ती होने के समय था। सबके दिल भारी हो गए थे। अपने प्रिय विद्यालय से बिछुड़ने की व्यथा सबके दिल को कचोट रही थी।

विदाई समारोह का आयोजन

बिदाई समारोह शाम के चार बजे रखा गया था। विद्यार्थी और अध्यापक समय के पूर्व ही आ गए थे। ठीक चार बजे प्रधानाध्यापकजी और सभी अध्यापक एकत्र होकर समागृह में पधारे। सबका हार्दिक स्वागत किया गया। इसके पश्चात प्रधानाध्यापकजी का भाषण हुआ। उनके भाषण में एक पिता का दिल बोल रहा था। उन्होंने हमें परीक्षा संबंधी कुछ सुचनाएँ दी और जीवन में अनुशासन, सादगी, सफाई, समाजसेवा और कर्तव्यपालन के महत्त्व पर प्रकाश डाला। अंत में हमारे उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इसके बाद हमारी कक्षा के कुछ अन्य अध्यापकों ने भी प्रसंगोचित संक्षिप्त भाषण किए।

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मेरी बड़ी इच्छा थी कि अपने पूज्य गुरुजनों के प्रति आदर और श्रद्धा के दो शब्द बोलूँ, पर उस समय मेरे मुँह से एक भी शब्द न निकल पाया। अंत में विद्यार्थियों की तरफ से मेरे दो सहपाठियों ने यह काम पूर्ण किया। दूसरे एक सहपाठी की कविता’ माँ ने हमको दूध पिलाया, तुमने अमृत ज्ञान का’ का भाव सबके दिलों को छू गया। इसके बाद सबने मिलकर अल्पाहार किया। फोटोग्राफर ने हम सबका ग्रुप-फोटो लिया। उसके बाद विद्यार्थी बिदा होने लगे।

बिदाई की व्यवस्था

मेरे सभी मित्र पाठशाला छोड़कर अपने अपने घर चल दिए। न जाने क्यों मेरे पैर आगे नहीं बढ़ते थे। पैरों में मानो भारी बेड़ियाँ पड़ गई हो । आनंद, उत्साह और व्यथा की अनोखी त्रिवेणी से मेरा हृदय भर आया। मेरे मन में अपने अध्यापकों के प्रति आदर की भावना से मेरा मन उमड़ आया। मैंने उनके पास जाकर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। पाठशाला की प्रत्येक वस्तु में आज मैने करुण व्यथा के दर्शन किए। इनसे बिछुड़ने के दुःख से हृदय भर आया। आखिर सबको मन ही मन प्रणाम करके मैं अपने घर की ओर चल पड़ा।

बिदाई

उस दिन मैं अनमना ही रहा। बिदाई का वह भावपूर्ण दृश्य मेरी आँखों के आगे से हटता ही न था। वैसे तो मनुष्य के जीवन में विरह-मिलन, सुख-दुःख आदि के अवसर आते ही रहते हैं। किंतु पाठशाला के स्वर्णिम जीवन का वह अंतिम दिन मेरे जीवन की अविस्मरणीय स्मृति है।


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