प्रदर्शनी में दो घंटे हिंदी निबंध Visit to an Exhibition Essay in Hindi

Visit to an Exhibition Essay in Hindi: प्रदर्शनी में दो घंटे व्यतीत करने के समान रुचिकर, जानप्रद और मनोरंजक कार्य दूसरा कौन-सा हो सकता है? प्रदर्शनी में जो ज्ञान और मनोरंजन सरलता प्राप्त हो जाता है, वह शायद पुस्तकों के सैकड़ों पृष्ठ पढ़ने पर भी नहीं मिल पाता।

प्रदर्शनी में दो घंटे पर हिंदी में निबंध Visit to an Exhibition Essay in Hindi

प्रदर्शनी में दो घंटे पर हिंदी में निबंध Visit to an Exhibition Essay in Hindi

प्रवेशद्वार

कुछ दिन पहले मैं अपने मित्रों के साथ मुंबई में ‘टुरिस्ट एक्जीबिशन’ देखने गया था। चर्चगेट के समीप क्रॉस मैदान में यह प्रदर्शनी लगी थी। चारों ओर लोहे की पट्टियों से दीवार बनाकर उसकी सीमा बाँध दी गई थी। दूर से ही उसकी चहल-पहल मन में कुतूहल पैदा करती थी। प्रदर्शनी के प्रवेशद्वार की शोभा देखते ही बनती थी। प्रवेशद्वार के दोनों ओर सूंड में कमल लिए हुए दो विशालकाय हाथी बनाए गए थे।

गुजरात का स्टॉल, समाचारपत्रों का खंड और कश्मीर की झाँकी

प्रदर्शनी में प्रवेश करने पर सबसे पहले ‘गुजरात स्टॉल’ के दर्शन हुए। यहाँ गुजरात की प्राचीन संस्कृति के सुंदर नमूने थे और चित्रों एवं नक्शों द्वारा अर्वाचीन विकास योजनाओं की रूपरेखा पेश की गई थी। दूसरे खंड में सैकड़ों वर्ष पहले के समाचारपत्र थे। आगे की ओर कश्मीर की झाँकी दी थी। एक शिकारे में ‘पृथ्वी के स्वर्ग’ कश्मीर के दर्शनीय स्थानों के सुंदर चित्र थे।

कृषि विभाग, तरह-तरह की दुकानें

प्रदर्शनी में रेलवे और वायुयानों के भी तरह-तरह के ‘मॉडेल’ बनवाकर रखे गए थे। इनसे भारत ने इन विषयों में कितनी तरक्की की है, इसका ख्याल इन मॉडेलों से आता था। नदी-घाटी योजनाओं के ‘मॉडेल’ लोग बड़ी दिलचस्पी से देख रहे थे। कृषि विभाग में बीज, खाद आदि अनेक प्रकार की कृषि-संबंधी वस्तुएँ बड़ी सजावट के साथ रखी गई थीं । कृषि-संबंधी आधुनिक यंत्रों को देखकर लोग दाँतों तले उँगली दबाते थे। प्रदर्शनी में विभिन्न दुकानों में तरह-तरह के कपड़े, गहने, खिलौने, बरतन आदि बिक रहे थे।

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दर्शकगण

प्रदर्शनी में मनुष्यों का प्रवाह निरंतर आ रहा था। सब उम्र के, सब तरह के लोग उसमें थे। बच्चे खिलौने और मिठाइयों की दुकानों से हटने का नाम नहीं लेते थे। एक कोने में एक रेस्टोरॉ भी था, जहाँ काफी भीड़ थी। स्त्रियाँ कपड़े और गहनेवालों की दुकानों में खड़ी भाव-ताल कर रही थीं। चरखी, मौत का कुआँ, मेरी गो-राउँड, फैंसी ड्रेस शो, फिल्म शो जैसे मनोरंजन के साधन सबके दिलों पर जादू कर रहे थे। ऊँट-गाड़ी और अन्य सवारियों में बैठने के लिए बच्चों की लंबी कतार लगी हुई थी।

महत्त्व

सचमुच, इस प्रदर्शनी के द्वारा ही हमें भारत की प्राचीन संस्कृति और कला तथा आधुनिक औद्योगिक प्रगति के दर्शन हुए। करीब दो घंटे तक लगातार घूमकर हमने सब चीजें देखी, चक्र में बैठने का मजा भी लिया और हृदय में आनंद और उल्लास भरकर हम घर लौटे।


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